तुफानों में वही डटा रहा जिसके जड़ें गहरी हैं

    तुफानों में वही डटा रहा जिसके जड़ें गहरी हैं

        

 

                  तुफानों में वही डटा रहा जिसके जड़ें गहरी हैं

तूफानों का सामना करना और उनके बीच में स्थिर रहना सिर्फ उसी के बस की बात है जिसकी जड़ें गहरी और मजबूत होती हैं। तात्पर्य यह है कि जैसे एक पेड़ की जड़ें अगर मजबूत और गहरी हों, तो वह पेड़ आंधी और तूफानों का सामना कर सकता है और गिरता नहीं है, उसी तरह से मनुष्य को भी अपने जीवन में स्थिरता और सफलता पाने के लिए अपनी संस्कृति, संस्कार, और राष्ट्रीय धरोहर से जुड़ा रहना चाहिए।

महापुरुषों ने भी कहा है कि कोई भी राष्ट्र तब तक गुलाम नहीं हो सकता, जब तक वह अपनी संस्कृति को नहीं खोता अगर एक बार किसी देश की संस्कृति नष्ट हो जाती है या उस देश के लोगों के संस्कार पथ-भ्रष्ट हो जाते हैं, तो उस देश का गुलाम होना निश्चित है। संस्कृति और संस्कारों की यह जड़ें जितनी गहरी होती हैं, उतना ही देश मजबूत और स्वाभिमानी रहता है।

पेड़ की ऊंचाई जितनी बढ़ती है, उसकी जड़ों को भी उतनी ही गहराई तक जाना पड़ता है। यह एक प्राकृतिक नियम है, जो हमें यह सिखाता है कि मनुष्य को भी जीवन में ऊंचाई हासिल करने के बाद अपनी जड़ों को और मजबूत बनाना चाहिए। इसका मतलब यह है कि जैसे-जैसे व्यक्ति ऊंचे पदों या प्रतिष्ठा तक पहुंचता है, उसे अपने मूल्यों और संस्कारों को कभी नहीं भूलना चाहिए।

आज की नई पीढ़ी के कुछ युवा इस बात को पूरी तरह से समझ नहीं पाते, विशेष रूप से वे जो ग्रामीण परिवेश में नहीं पले-बढ़े हैं। उनके माता-पिता को उन्हें यह समझाना चाहिए कि जीवन में सफलता और स्थायित्व केवल आधुनिकता में नहीं बल्कि अपनी जड़ों से जुड़े रहने में भी है।

एक जहाज जब यार्ड में होता है तो वह सुरक्षित रहता है, लेकिन उसका वास्तविक मूल्य तब ही होता है जब वह पानी में उतरकर लहरों को चीरते हुए आगे बढ़ता है और लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाता है। अगर वह यार्ड में ही सुरक्षित खड़ा रहता है, तो वह सिर्फ लोहे और धातु की वस्तु है, जहाज नहीं।

उसी प्रकार जब व्यक्ति जीवन के संघर्षों में आगे बढ़ता है, तो उसके संस्कार, परिवेश और समाज उसके निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह वही जड़ें हैं जो उसे जीवन के तूफानों में स्थिर और दृढ़ बनाए रखती हैं।

इसलिए, चाहे जीवन में कितनी भी ऊंचाई पर क्यों  पहुंच जाएं, अपनी जड़ों से जुड़े रहना अनिवार्य है। यही जड़ें हमें विपरीत परिस्थितियों में भी टिके रहने की शक्ति प्रदान करती हैं और हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने में मदद करती हैं।

संस्कृति और संस्कारों की ये जड़ें ही हमारे जीवन का आधार हैं। इनसे ही हमें वह स्थिरता मिलती है, जो जीवन के तूफानों में भी हमें डटकर खड़ा रहने की ताकत देती है। इसीलिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, हमें अपनी जड़ों से कभी अलग नहीं होना चाहिए। यही हमारी ताकत है, और यही हमारी पहचान।

 

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